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मतलबी दुनिया

क्या करना है तुझे इस दुनिया में, ये दुनिया है बड़ी मतलबी, दिखाना है उनको जो कमज़ोर समझते है, बढ़ना है हर कदम आगे उन गैरों से, तुझे बढ़ना है आगे इस दुनिया में, लेके अपने सपनों को साथ, और बढ़ते ही रहना है अपनो के साथ।

मिल गया मेरा जहाँ।

श्याही से वक़्त की यादो को लिखते जाएँगे, दिल की हर बातों को याद करते जाएँगे। मैं जभी तुझे देख लूँ तो मेरे मर्ज की हो जाये दवा। तू पूरे चाँद जैसी है, मैं एक समुंदर जैसा , जब भी कोई तूफ़ान उठे समुंदर में छू ले मेरी लहरें तुझे, मिल गया मुझे तेरा जहाँ।

सिर्फ़ तुम

तब मैं सारे ज़माने पर लिखता था, और सिर्फ तुम सुनती थी, अब मैं सिर्फ तुम पर लिखता हूँ, और अब सारा ज़माना सुनता है।

आवाज़

कुछ लोग ऐसे है जो सफर बदल देते है, या फिर कुछ लोग हमसफर बदल लेते है, कुछ लोग नज़र भी बदल लेते हैं, तो कुछ लोग शहर भी बदल लेते हैं, नही हार मानते किसी किस्मत के आगे, हम वो है जो मुक्कदर बदल लेते है।

MOBIPIX 2017

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मोबी पिक्स 2017 पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के दूसरे सेमेस्टर के छात्रों एवं समस्त गुरुजन और स्टाफ द्वारा मोबीपिक्स कार्यक्रम 13 अप्रैल को आयोजित हुआ | सभी लोगो ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, इस कार्यक्रम में मोबाइल से ली गयी फोटो की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया | सारे छात्रों ने मोबाइल से फोटो खींच कर प्रदर्शनी में लगायी | मुख्य अतिथि के रूप में दूरदर्शन के श्री आत्म प्रकाश मिश्रा और नवभारत टाइम्स के सौरभ श्रीवास्तव  उपस्थित रहे और कार्यक्रम की शुरुवात करी | इस कार्यक्रम को सफल बनाने में हमारे विभाग के आफताब अनवर जी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा | मोबिपिक्स कार्यक्रम पिछले तीन सालो से चल रहा है और इसका श्रेय हमारे विभागाध्यक्ष डॉ मुकुल श्रीवास्तव को जाता है जिन्होंने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते रहने का काम किया है | भाग लेने वाले सभी छात्रों को मुख्य अथितियों द्वारा सर्टिफिकेट प्रदान किया गया कार्यक्रम के दौरान | कार्यक्रम का संचालन सुरभि यादव जी ने किया और सफलता पूर्वक पिंटू जॉर्डेर जी ने समापन किया | कार्यक्रम की कुछ चित्रों को संगलन कर रहा हूँ |  छात्राओ द्वारा फूलो स

याद शहर

दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्ते अक्सर इसलिए टूट जाते है क्योंकि हमे जिनसे शिकायत होती है, हम उनकी बात कभी सुनना ही नही चाहते और ये आधी आधी नफ़रतें रिशतों को पूरा मार देती है।                                                 - नीलेश मिश्रा

मेरी माँ

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बचपन की कुछ बातें याद हैं मुझे, याद है मेरी माँ का वो आशाओं से भरा चेहरा सपनों से भरी वो आँखें जिससे उन्होंने कितनी उम्मीदों को पाला था रातों को जाग - जागकर  । माँ का वो शांत सा चेहरा याद है मुझे मेरे लिए देर तक माँ का खाने पर इंतज़ार करना और अपने हिस्से की मिठाई मुझे दे देना । मेरे लिए मंदिरो में जाकर देवी - देवताओं से मन्नतें मांगना लेकिन मेरी माँ शायद यह नहीं जानती कि इस युग में जहाँ हर चीज़ दौलत की तराज़ू पर तौली जाती है बड़े बड़े चढ़ाओ वालो की मन्नतें पूरी होती है वहां तेरी ये पवित्र मन्नतें किसी भारी चढ़ावे के नीचे दबकर दम तोड़ देगी।